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श्रीनगर के प्रमुख पर्यटन स्थल और इतिहास

 

श्रीनगर के प्रमुख पर्यटन स्थल और इतिहास 



श्रीनगर-के-प्रमुख-पर्यटन-स्थल-और-इतिहास
 इंद्रिरा गांधी मेमोरियल टूलिप गार्डन,श्रीनगर


श्रीनगर बहुत ही ख़ूबसूरत जगह है। जम्मू-कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी होने के कारण इसका खास महत्व है। यहीं से पवित्र अमरनाथ गुफा जाने के लिए बेस कैंप बालटाल जाने का मार्ग गुजरता है।इस स्थान को धरती का स्वर्ग नाम से भी जाना जाता है।झील और पहाड़ों के मध्य बसे शहर का प्रमुख आकर्षण डल झील और यहां के बगीचें है जो कि अपने स्थापत्य और प्राकृतिक सौंदर्य के लिये प्रसिद्ध है। यहां कई आकर्षक रंग बिरंगे पुष्पों का आशियाना है।  जो बगीचों कि सुंदरता को पूर्ण वैभवता प्रदान करते है। प्राचीन लेखों के अनुसार यह भूमी दलदली थी। उस समय ऋषि कश्यप ने इसे अपनी तपस्या के लिए बनाया। धीरे-धीरे युग बीतने के साथ समय समय पर परिवर्तन होते गये। काश्मीर के उत्तर क्षेत्र को कामराज व दक्षिण को मरज नाम से पहचाना  जाता है । इस क्षेत्र में ठंड अधिक होने से यहां का पहनावा भी विशेष तरह का होता है। कपडों के उपर( एक प्रकार का लंबा कोट)  फेरन पहना जाता है और नीचे ढीला  पायजामा। अधिक ठंड में एक विशेष प्रकार कि सिगड़ी जिसमें जले कोयले होते है गले में लटकाई जाती है। खानपान में अधिकांश लोग मांसाहार का प्रयोग करते है। यहां शाकाहारी  भोजन में नदरु यखिनी जो कि कमल ककड़ी व दही से स्वादिष्ट मसालों के साथ बनाई जाती है। अन्य शाकाहारी भोजन मे 

दम आलू
कश्मीरी राजमा  
मांसाहारी में कई प्रसिद्ध व्यंजन है।
रोशन जोश 
आब गोश्त
नादिर मोंजी 
यखिनी लेंब 

यहां के लोग मृदु भाषी और व्यवहारिक होने के साथ गीत संगीत के भी शौकीन हैं रऊफ जनजाति का डमहल नृत्य व लोकगीत बहुत प्रसिद्ध है। आज हम श्रीनगर के प्रमुख पर्यटन स्थलों कि सैर पर जायेंगें। वैसे तो यहां का मुख्य आकर्षण डल झील 


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डल झील में तैरता हुआ बाजार 


 बहुत बडे क्षेत्र में फैली इस झील में रंग-बिरंगी साज सज्जा से सुशोभित नावें जिन्हे शिकारा कहते है। मुख्य आकर्षण है । इस  शिकारा  में चार व्यक्तियों के बैठने की शाही व्यवस्था होती है। आपकी निजता को ध्यान में रखकर पर्दे लगे होते है। नाविक पीछे बैठकर नाव चलाता है। हां आपके शिकारें के पास छोटी छोटी नावों में दुकानदार विभिन्न सामान बेचने आते रहते है।  


यहीं इसी झील में तैरता हुआ बाजार भी है। जहां आप हस्त कला ,सुखे मेवे और सादे व ऊनी कपडों की खरीदी कर सकते हैं। मगर याद रहें मोल भाव बहुत करना पड़ेगा। कभी कभी तो कीमतें दो गुना से भी ज्यादा बोली जाती है। बातों बातों में मैं तो भूल ही गया था। आज हमें श्रीनगर घूमने जाना हैं। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों 

1.डल झील 

2. इंद्रिरा गांधी मेमोरियल टूलिप गार्डन 

3.शंकराचार्य मंदिर 

4. खीरभवानी मंदिर  

5. नेहरु बोटनिकल गार्डन

6. निशात बाग

7. वेरी नाग गार्डन

8. बादाम वारी 

9. शालीमार गार्डन

10. नगीन झील

11. वुलर झील

12. हज़रत बल दरगाह

13. जामा मस्जिद

14. पत्थर मस्जिद

15. छट्टी पद शाही गुरुद्वारा 

16. चश्में शाही

17. परी महल

18. अचबल 

19. दांचीगाम गाम राष्ट्रीय उद्यान 

20. यूसमर्ग 

21. चार चिनार 

22. SPS म्यूज़ियम 

23. ज़बरवन पार्क 

24. हरी प्रभात किला

25.  दुधपती 

श्रीनगर में मार्च से जुलाई तक का समय बहुत भीड़भाड़ वाला रहता है। विशेष कर मार्च और अप्रेल के मध्य टूलिप पुष्पों का सबसे ज्यादा आकर्षण रहता है। 

शंकराचार्य मंदिर

आज हम लोग सबसे पहले शंकराचार्य मंदिर जिसे ज्येष्ठेश्वर नाम से भी जाना जाता है देखने जा रहे हैं। यह मंदिर समुद्र तल से 1850 मीटर की उंचाई पर स्थित है। अभी हमारी गाड़ी मंदिर मार्ग पर कुछ दुर ही गई थी कि CRPF की चेकपोस्ट होने से हमें अपनी जानकारी देनी पड़ी साथ ही गाड़ी की भी चेकिंग हुई। आज भीड़ ज्यादा होने से उपर जाम कि स्थिति बनी हुई थी। अब जितनी गाडियां उपर से आती उसी संख्या में जाने दे रहे थे। किसी तरह हम उपर पहुंचे। हर जगह चेकपोस्ट थी।  मंदिर से श्रीनगर का नजारा बहुत सुंदर लग रहा था।  ज्येष्ठेश्वर नाम वर्तमान में शंकराचार्य मंदिर में पहुंचने के लिए 248 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती  है । दिव्य तपस्वी की पवित्र तप स्थली और मंदिर के आस पास के दृश्यों ने मन मोह लिया था। दर्शनों के बाद थोडी देर मंदिर परिसर में  रुक कर वापस अपनी गाड़ी की ओर चल दिये।


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शंकराचार्य मंदिर 

इंद्रिरा गांधी मेमोरियल टूलिप गार्डन

हमारा अगला पाईंट एशिया  का सबसे बड़ा टूलिप गार्डन इंद्रिरा गांधी मेमोरियल टूलिप गार्डन था। जो कि करीब 74 एकड़ में फैले इस गार्डन में कई रंगों के टूलिप पुष्प लगायें जाते हैं। 2007 से इस उधान की शोभा बने यह टूलिप बल्ब पर्यटकों की पहली और विशेष पसंद रहें हैं। प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक इनकी सुंदरता निहारने आते हैं। एक माह के इस आयोजन को मार्च और अप्रैल के मध्य मनाया जाता है।  इस वर्ष हमें भी इस आयोजन का हिस्सा बनने का अवसर मिला।  टूलिप पुष्पों के सौंदर्य को पास से देखने पर उनकी अनुपम सुंदरता और  चटक रंगों ने मंत्र-मुग्ध कर दिया था।  यह गार्डन बहुत बड़ा होने से काफी समय लग गया।


खीरभवानी मंदिर 

श्रीनगर से लगभग 26 किमी दूर गांदरबल के तुलमुल गांव में स्थित मां खीर भवानी का मंदिर है। कहते हैं यहां के जलाशय का रंग आने वाली विपत्तियों के बारे में पूर्व सुचना दे देता हैं।  मां खीर भवानी जो कि वास्तव में रावण की कुलदेवी राग्या माता है। सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर एक जलाशय के मध्य स्थित है। शिव और शक्ति की युग्म मां राग्या देवी की पुजा भगवान रामचंद्र जी ने भी वनवास के समय की थी। 
सन 1912 में तत्कालीन राजा गुलाब सिंह ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। ‌प्रति वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी और शुक्ल अष्टमी को मेला लगता है। एक बार मां ने स्वप्न में राजा से मीठा लाने को कहा तब राजा ने खीर का भोग लगाया और तभी से यहां खीर का भोग लगता है। कालान्तर में इनका नाम भी मां खीर भवानी पड़ गया । अमरनाथ यात्री यहां होकर ही आगे प्रस्थान करते हैं

नेहरू बोटनिकल गार्डन 

डल झील के पास स्थित यह गार्डन बहुत सुंदर फुलों और अनेक वनस्पतियों तथा आकर्षक सज्जा के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।  1987 में बनकर तैयार यह उधान जवाहरलाल नेहरू की स्मृति में समर्पित किया गया है। यहां पर विभिन्न काश्मीरी लिबास किराये पर मिल जाते हैं। जिससे आप उन्हें पहनकर अपना फोटोग्राफी का शौक पुरा कर सकते हैं। यहां के सभी गार्डनों में टिकीट लगते हैं।

निशात बाग 

नूरजहां के बड़े भाई आसिफ खान ने फारसी वास्तुकला और फव्वारों से सज्जित इस बाग को डल झील के‌ करीब बनवाया था। 

शालीमार बाग 

सन 1619 में बादशाह जहांगीर ने अपनी पत्नी नूरजहां के लिए बनवाया था। श्रीनगर से 12 किमी दूर डल झील के पास स्थित यह बाग मुगल उधानों में से एक है।


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शालीमार बाग 

हरी पर्वत और हरी प्रभात किला 

श्रीनगर शहर में बादाम वारी के करीब  हरी पर्वत पर हरी प्रभात किला है। 18 वीं शताब्दी में अफगान गवर्नर मुहम्मद ख़ान द्वारा निर्मित किले की देखभाल जम्मू-कश्मीर पुरातत्व के अधीन होने से इस ऐतिहासिक किले में जाने के पूर्व विभाग से अनुमति लेनी होगी। इस पर्वत पर कई छोटे बड़े आराध्य स्थल है। इनमें मां शारिका देवी का मंदिर प्रमुख है। जहां शक्ति पीठ के तुल्य पुजा अर्चना की जाती है।कहते हैं ये नगर की देवी है।  एक गुरुद्वारा छट्टी पादशाही जहां छठे सिख गुरु हरगोबिन्द सिंह पधारे थे।  दक्षिणी में सूफ़ी संत हमजा मखदूम की मस्जिद है। हरी पर्वत से शहर का बहुत सुंदर दृश्य दिखाई देता है। 15 अगस्त 2021 को 100 फीट का तिरंगा फहराया गया था। यह तिरंगा दूर से ही दिखाई देता है।

चश्में शाही 

सन 1632 में शाहज़हां ने डल झील के निकट एक खुबसूरत झरना और उद्यान बनवाया था।


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चश्में शाही 

नगीन झील 

श्रीनगर से लगभग 8 किमी दूर नीले पानी की झील है। जबरवांन पहाड़ी की तलहटी में चिनार के पेड़ों से घिरीं यह झील एकदम शांत और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है।

हज़रत बल दरगाह 

पैगंबर के निशान होने से यहां का महत्व बढ़ जाता है। सफेद संगमरमर से निर्मित बहुत सुंदर है।

परी महल 

16वीं शताब्दी में शाहजहां के पुत्र दारा शिकोह ने रहने और पुस्तकालय के रुप में बनवाया था। आगे चलकर  एक वेधशाला के रूप में इस्तेमाल किया गया, जो ज्योतिष और खगोल विज्ञान के लिए उपयोगी थी।

वूलर झील 

शहर से 60 किमी दूर 200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली मीठे पानी की झील सभी तरफ पहाड़ियां से धिरी हैं। यहां बहुत से पक्षियों का रैन बसेरा है। सूर्यास्त का दृश्य देखने दूर दूर से आते है।

पत्थर मस्ज़िद 
 सन 1623  में नूरजहां ने झेलम नदी के किनारे पत्थरों से एक मस्जिद बनवाई थी। 

यूसमर्ग 

श्रीनगर शहर से 48 किमी दूर बड़गाम के पश्चिम मे , दूध गंगा नदी के तट पर  समुद्र तल  से  2396 मीटर की ऊंचाई पर एक बहुत सुंदर हिल स्टेशन है। हरे भरे घास के मैदान को चीड़,सनोबर के वृक्ष और खुबसूरत बना देते है। बर्फीली चोटियां पुरे परिदृश्य को फोटोजेनिक बना देता है। निकट ही नील नाग व दुधगंगा कृत्रिम बांध होने से जंगली पशु पक्षियों की चहल पहल रहती है। यहां पर घुड़सवारी तथा सर्दियों मे स्कीइंग के खेलों का आयोजन होता है।

दांचीगाम राष्ट्रीय उद्यान 

श्रीनगर शहर से 22 किमी दांचीगाम राष्ट्रीय उद्यान  समुद्र तल से 4300 मीटर की उंचाई पर स्थित है। यह 141 वर्ग किमी में फैले इस उधान में कश्मीरी हिरण और हंगुल का घर है। यहां पर कस्तुरी मृग, तेंदुआ, पहाड़ी लोमड़ी, हिमालयन भालू व जंगली बिल्ली भी है। 

चार चिनार 

चारों कोनों पर चिनार के वृक्षों से धिरे डल झील के मध्य इस स्थान को औरंगजेब के भाई मुराद बख़्श ने बनवाया था।

लाल चौक और घंटाघर

श्रीनगर का लाल चौक आज़ादी के वक्त से ही सुर्खियों में रहा है। यहां समय समय पर राजनीतिक गतिविधियों ने बड़ी हलचल पैदा करी है। एक समय तिरंगा फहराना बड़ी चुनौती थी।  जबकि आज यहां पर विकास हो रहा है। और तिरंगा भी फहराया जाता है। अब तो मेन रोड़ की स्ट्रीट लाइट पर भी इसी रंग की खूबसूरत लाईटिंग करवाई गई है। पुराने घंटाघर को पुनः नवीन रूप में बनवाया गया है। 22 से 24 अप्रैल 2023 को G-20 की समिट का आयोजन हुआ है। आज के श्रीनगर का स्वरुप ही बदल गया है। घंटाघर के पास ही बहुत बड़ा बाजार क्षेत्र भी है।


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लाल चौक

बादाम वारी 

यह पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण है। खुबसूरत बगीचे और विभिन्न पौधों को आकर्षक रुप देकर तैयार किया है। इसका नाम बादाम के वृक्षों के कारण पड़ा है। यहां बहुत संख्या में बादाम के वृक्ष हैं। जब इन पर फुल खिलते है तो यहां कि सुंदरता कई गुना बढ़ जाती है।


इन सब जगहों पर घुम कर बहुत आनंद आया। यह यात्रा हमारे लिए यादगार रही। मौसम भी खुशनुमा था। रही बात सुरक्षा की तो हर समय सेना और स्थानीय पुलिस बल सदैव चौकन्ना रहते है। इनकी वजह से इस बार सबसे ज्यादा पर्यटक काश्मीर घुमने आये। धन्यवाद सभी सुरक्षाबलों को जिनकी वजह से जीवन सामान्य हो रहा है। स्थानीय निवासी भी व्यवहार कुशल है।


श्रीनगर पहुंच ने के लिये आप सकते हैं।

सड़क मार्ग  :-  जम्मू           246 किमी
                     पठानकोट    310 किमी
                      दिल्ली        862 किमी

रेल मार्ग         जम्मू से निर्माणाधीन है।

वायुमार्ग।         दिल्ली
                     जम्मू और  मुंबई से सीधा जुड़ा है।

रहने के लिये  बजट व मंहगे सर्व सुविधायुक्त होटल तथा शिकारें बहुतायत में है।
खाने के लिए शाकाहारी भोजन के सीमित साधन है मगर आसानी से मिल जाते हैं। हां नानवेज के लिए बहुत से कोई कमी नहीं।


  चलिये अब अगली मुलाकात गुलमर्ग में होगी।

                                                                            जय श्रीकृष्ण 
           

                      

                     


सोने की घास के मैदान सोनमर्ग का सफर

सोने की घास के मैदान सोनमर्ग का सफर                                                                      


सोने- की -घास- के- मैदान- सोनमर्ग- का- सफर
थाजीवास-ग्लेसियर-सोनमर्ग  

श्रीनगर में हमारा दुसरा दिन और रूट चार्ट के अनुसार अगला पाइंट सोनमर्ग था। जम्मू-कश्मीर राज्य के गांदरबल में करीब 2850 मीटर की उंचाई पर स्थित पर्वतीय पर्यटन स्थल जहां पर कई पर्वत और ग्लेशियर है। शीतकाल में ये स्थान बर्फ से आच्छादित रहता है तो ग्रीष्म में घास के मैदान ऐसे  प्रतीत होते है कि स्वर्ण का आवरण चढा हो। रेशम के लिये प्रसिद्ध यह स्थान पुराने समय में शिल्क प्रवेश द्वार के रुप में जाना जाता था। काश्मीर लद्दाख और चीन का मार्ग यहीं से गुजरता है।

श्रीनगर से सोनमर्ग की दूरी 80 किमी है। वहां पहुंचने में करीब तीन धंटे का समय लगता है। इसलिए सुबह जल्दी जाना था । रात में ही टेक्सी की व्यवस्था कर ली और सुबह 8.00 बजे  होटल आने का कह दिया।                                                                                                                        

सुबह  हम सब तैयार होकर  होटल के बाहर आये तो हर तरफ बारिश की वजह से पानी ही पानी भरा था। ऐसा लग रहा था। मानो रात भर बारिश हुई हो। ठंडी हवा भी चल रही थी। मौसम के अनुरुप सब को चाय की तलब लगी। पास ही रेस्टोरेंट में चाय का आर्डर कर बाहर ही इंतजार करने लगे। कुछ ही समय में गाडी भी आ गई थी। उबैद भाई हमारी गाडी के ड्राइवर  बहुत ही सज्जन और सुलझे हुऐ इंसान हर समय सही सलाह दी। हम  जल्द ही अपनी मंजिल की ओर चल दिये धीरे-धीरे मौसम भी साफ हो रहा था। हल्की सी धूप  निकलने से हम लोगों ने राहत की  सांस ली।   गाडी श्रीनगर के अंदरूनी इलाकों से गुजर रही थी सुबह सुबह कही पर बच्चे अपने स्कूल बस का इंतजार कर रहे थे तो कहीं पर  साफ सफाई का काम चल रहा था। इसी तरह  घनी बस्ती से बाहर निकलते ही डल झील के दुसरी तरफ की  झलक दिखाई दी।  निकट ही कोई खुबसूरत बाग भी था। झील में शिकारे और कही कहीं हाऊस बोट भी नजर आ रही थी।  नजारों को निहारते निहारते अब हम लोग मुख्य मार्ग पर आ गये। बाहरी इलाकों में बहुत सुंदर मकान और पृष्ठ भाग में ऊंची पहाड़ियों की श्रृंखलाएं ऐसे प्रतित हो रहा था जैसे कोई खुबसूरत पेटिंग बनाई हों। हम  लोग प्राकृतिक नजारों को देखने में इतने व्यस्त थे कि समय का ध्यान ही नहीं रहा । करीब एक घंटे की यात्रा के बाद गाडी रेस्त्रां के सामने रुकी।  होटल में खाने का आर्डर देकर पास में घुमने निकल पड़े। बहुत शानदार जगह थी। एक तरफ नदी में बहता पानी अपनी मधुर संगीत स्वर लहरी बिखेर रहा था तो निकट में पर्वत श्रृंखला मंत्र-मुग्ध से शांत भाव में निहार रही हो। ऐसे खुबसूरत नजारों को कैमरे में कैद करने से हम अपने को रोक नहीं पाए। और हम इस कार्य में अकेले नहीं थे। और भी बहुत लोग फोटोग्राफी कर रहे थे।  

इधर हमारा खाना टेबल पर लग गया था। गर्मा गर्म आलू के परांठे के साथ में दही व अचार ने खाने को और भी लजीज बना दिया।                                              


सोने- की- घास -के- मैदान- सोनमर्ग -का- सफर
स्वादिष्ट-नाश्ता-सोनमर्ग  
                                       

करीब एक घंटे के विश्राम के बाद हम सोनमर्ग की तरफ चल दिये। रास्ते में कई जगह बर्फ से आच्छादित पहाड़ियां के मध्य से सडक गुजर रही थी। मानो अपने लिए रास्ता मांग रही हो। इस शांत सी जगह में भी ट्राफिक का अत्यधिक दबाव बना हुआ था । ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सभी सोनमर्ग ही जा रहे हो।  रास्ते में कई जगह प्राकृतिक दृश्यों ने मंत्र-मुग्ध सा कर दिया । कहीं कहीं सडक पर कार्य चलने से थोडा खराब रास्ता के कारण अचानक झटके लगने लगते। एक दो जगह तो टनल का कार्य भी बहुत बडे पैमाने पर चल रहा था और  बीच-बीच में कहीं मरम्मत कार्य के चलते थोडा समय ज्यादा लगा।  आखिर हम सोनमर्ग पहूंच गये।  बर्फ से आच्छादित पहाड़ियां, आस पास के मनोरम दृश्य और खुशनुमा  मौसम ने मन प्रफुल्लित कर दिया।


सोने- की- घास- के- मैदान -सोनमर्ग- का- सफर
थाजीवास-ग्लेसियरसोनमर्ग   

उपर थाजिवास पार्क तक जाने के लिये  कुछ पौनी वालों से चर्चा करी लेकिन बहुत ज्यादा रेट बताने से हमने प्रीपेड खिडकी पर जानकारी ली। उक्त जगहों के प्रति व्यक्ति पन्द्रह सौ  रेट तय है। इसमें समय सीमा का बंधन नहीं है। यहीं से धोड़े किराये पर लिये।  साथ ही लंबे कोट तथा बरसाती जुते भी किराये पर लेना पड़े। अपने साधारण जुते बर्फ़ में काम नहीं करते।  रास्ते में एक जगह चैंकिंग कर पुछताछ हुई थी। वहां पर भी बताया गया था कि आपके साथ धोखा न हो इसलिये हम जानकारी लेते हैं। अभी थोडा सा ही चले होगें कि फोटोग्राफर,स्लेज और गाईड साथ हो लिये। यहां पर आपको भावनात्मक व लाचार बन फंसाया जाता है। तय रेट से कहीं अधिक मांग की जाती है।  बहुत मोल-भाव के बाद स्लेज वाले को ही हां कहा।  पहाड़ों पर बर्फ देख सभी बहुत प्रफुल्लित हो गये। जो दृश्य फिल्मों और नेट पर देखते थे आज वास्तव में देख रहें हैं। यहां कई अन्य गतिविधियों भी संचालित  कि जा रही थी। किंतु किराया अत्यधिक था। परिवार के सभी सदस्यों ने भरपुर आनंद लिया। बस थोडा सा मलाल रहा कि बारिश शुरु होने से हमें जल्द वापस आना पडा। रास्ते में ऐसा कोई स्थान नहीं दिखा जहां बारिश से बचा जा सके।  कच्चे और कीचड़ से भरे उबड़-खाबड़ रास्ते पर करीब पौन धंटे की पौनी सवारी के अच्छे व बुरे अनुभव रहे। हते हैं यहां के मैदान सोने जैसी घास के दिखाई देते है। इसलिए इसे सोनमर्ग नाम मिला। अब हमे तो इस मौसम मे सभी तरफ बर्फ ही दिखाई दी।   बारिश की वजह से सभी भीग गए थे ऊपर से मौसम की ठंडक ने अच्छा खासा अहसास दिला दिया।       

  यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल                                                                                 

  • ज़ोजी ला पास   
  • थाजीवास  ग्लेसियर   
  • विशनसर झील
  • नीलगार्ड नदी
  • बालटाल घाटी
  • युसमर्ग
  • कृष्णसर झील
  • गदासर झीलगंगाबल झील

अच्छा विदा लेते हैं। अगले अंक में श्रीनगर  मे  मिलेगे।          

 बर्फ देखनी हो तो दिसंबर से फ़रवरी मार्च और हरियाली के लिये अप्रैल से अगस्त के माह उत्तम समय है। श्रीनगर से सडक मार्ग से सीधा जुडा है।  अमरनाथ यात्रा के लिए भी एक मार्ग यहीं से गुजरता है।  

                                                                 

                                                                          जय श्रीकृष्ण 


            

पहली हवाई यात्रा दिल्ली एयरपोर्ट से (कश्मीर भाग -2)

  पहली हवाई यात्रा दिल्ली एयरपोर्ट से   ( काश्मीर  भाग- 2)  


दिल्ली एयरपोर्ट,पहली हवाई यात्रा दिल्ली एयरपोर्ट  से
पहली हवाई यात्रा दिल्ली एयरपोर्ट से 


हमारी श्रीनगर की फ्लाईट 11.30 बजे थी। पहली हवाई यात्रा होने से हम लोग एयरपोर्ट की कार्यप्रणाली से भी पूर्ण अनभिज्ञ थे। इसलिए तय किया कि 9.00 बजे तक एयरपोर्ट पहुंच जायेंगे। 
टेक्सी ने हमे समय पर टर्मिनल नंबर 3 पर पहुंचा दिया। यहां आने पर पता चला क्यों जल्दी आना चाहिए। प्रवेशद्वार पर बहुत लंबी लाइन लगी थी। हम लोग भी लाईन में लग गये। करीब आधे धंटे में नंबर आया । यहां हमारे बोर्डिंग पास और आधार कार्ड की जांच हुई। बाकी तो सब ठीक था। मगर हमारे बेटू को थोडी देर रोक दिया। पता करने पर मालूम हुआ कि आधार कार्ड में पुरानी फोटो होने से पहचान नहीं हो पा रही थी। दरअसल हम से भी भूल हो गई नवनीकृत आधार कार्ड की जगह पुराना दे दिया था।

यहां से अब हमें अपनी एयरलाइंस के कांउटर पर जाना था। इसके लिए हमने  एयरपोर्ट स्टाफ की मदद लेकर सही स्थान पहुंच गए। अपना बोर्डिंग पास दिखाकर अपने बैग जमा कर लगेज स्लिप ली और सिक्योरिटी गेट की तरफ चल दिये।  लंबी लाइन लगी थी। हमारा नंबर आने पर अपना सभी सामान जैसे मोबाइल , पर्स,चिल्लर,बेल्ट और जो भी सामान जेब में था नगद राशि को छोड़कर एक प्लास्टिक बकेट में रखकर रोलिंग टेबल पर छोड़ दिया । हम स्वयं की सिक्योरिटी चेकिंग के लिए लाईन मे लग गये। इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद अपना सामान रोलिंग टेबल से लिया  किंतु धर्मपत्नी के पर्स में एक छोटा सा पैकेट होने से  विशेष कैमरे से चेकिंग हुई पैकेट को खुलवाया और संतुष्टी होने पर जाने दिया। अब हम सभी एयरपोर्ट क्षेत्र में आ गये थे। सारी प्रक्रिया में दो धंटे का समय लग गया। अभी हमारे पास समय था इसलिए वहां लगी ड्यूटी फ्री दुकानों में घूमते हुऐ फुड जोन में आ गये । यहां हल्का नाश्ता किया मगर बहुत मंहगा था। हमारा अगला लक्ष्य निर्देशित गेट नंबर तक पहुंचना था। थोडे से प्रयास कर जल्द ही हम अपने गेट तक पहुंच गए। 

इंद्रिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट
इंद्रिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट 



11.15 बजे हमारा गेट खुला और साथ ही  हमारी फ्लाईट के लिये एनाउंस हुआ। हम सभी एयरोब्रिज से होकर प्लेन में अपनी सीट तक पहुंच गये।  थोडी देर के इंतजार बाद हमारा प्लेन रन-वे की ओर चल दिया।
करीब एक घंटे बीस मिनट में श्रीनगर एयरपोर्ट पर थे।
श्रीनगर में अपना लगेज लेकर एयरपोर्ट से बाहर आये और पूर्व भुगतान टेक्सी स्टैंड से टेक्सी लेकर सीधे अपने होटल पहुंचे। श्रीनगर में हमारी होटल के मालिक का व्यवहार बहुत ही अच्छा था।
 यहां ये बता दें कि जो आशंकाएं काश्मीर के बारे में थी। वे निर्मूल साबित हुई। सभी लोग बहुत आत्मीयता से व्यवहार करते हैं। लेन देन के लिये नगद , गूगल पे, फोन पे,पेटीएम सब चलते हैं। वैसे स्टेट बैंक और अन्य बैंकों की शाखाएं भी कार्यरत हैं। शाकाहारी भोजनके कई होटल रेस्टोरेंट हैं। सुरक्षा की दृष्टि से चप्पे चप्पे पर पुलिस  और सेना के जवान तैनात हैं।      
 
 दिन व्यर्थ न जाये इसलिये शाम 5.00 बजे हम लोग डल झील घूमने डल गेट पहुंचे। यहां बहुत  सारे शिकारें थे।डल झील में शिकारा सैर बहुत ही खुशनुमा अनुभव रहा। सजे- संवरे शिकारा में मखमली पर्दे व कवर शाही अंदाज का अहसास दे रहे थे। झील के शांत जल में हमारे शिकारा के पास सामान बेचने वाली नावें आने लगी । कोई ऊनी कपडे तो कोई केसर , हस्तशिल्प की कलाकृतियां ऐसे ही कई प्रकार के सामान कि तैरती दुकानें थी। इसी बीच एक फोटोग्राफर कश्मीरी लिबास लेकर आया और हमें उस परिधान में यादगार पल संजोने 
का अनुरोध करने लगा। परिवार के सदस्यों को भी अच्छा लगा और कई  फोटो शूट करवाये।


डल झील में शिकारे की सैर
डल झील में शिकारे की सैर 


डल झील के मध्य में खुबसूरत नेहरु पार्क है। शाम को लाईटिंग की रोशनी ऐसे लग रही थी मानो हजारों तारे झील में उतर आये हो। करीब दो धंटे की सैर कर वापस अपने होटल आ गये। शाम को बाजार की चहल पहल देखते बनती थी। हम लोग पैदल ही रेस्टोरेंट की तरफ चल दिये। यहां कई होटल रेस्टोरेंट हैं जहां केवल शाकाहारी भोजन उपलब्ध है। रात 10.00 बजे वापस होटल पहुंचे। कल हम लोग सोने की घास के मैदान सोनमार्ग का सफर [सोने की घास के मैदान सोनमार्ग का सफर [कश्मीर भाग 3] काश्मीर -भाग 3]पर मिलते हैं ।


डल झील बाजार
डल झील बाजार 


                     जय श्री कृष्ण 

धरती के स्वर्ग कश्मीर का खुबसूरत सफर (कश्मीर भाग -1.)

 धरती के स्वर्ग कश्मीर का खुबसूरत सफर (कश्मीर  भाग -1.)



डल झील
डल झील 

आज हम जिस यात्रा के संस्मरण आप से साझा कर रहे है।  वहां हर व्यक्ति एक बार अवश्य जाने की चाहत रखता हैं। यहां सुहाने मौसम के साथ प्राकृतिक नजारें और हर तरफ हरियाली सदैव आपको अपनी और आकर्षित करती है।  स्कूल के दिनों में काश्मीर के वर्णन को पढ़कर विचार करते थे कि क्या कोई जगह इतनी खूबसूरत होगी। हर समय यही अभिलाषा रहती थी कि एक बार वहां अवश्य जायेगें।  कई वर्षो बाद ही सही मौका मिला।

हमने अपनी योजना अप्रैल के दुसरे सप्ताह में बनाई जब टूलिप् पुष्प अपनी निराली छटा पूर्णता से बिखेरते हैं। इस समय वहां बहुत भीड़ रहती है। असुविधा से बचने के लिये होटल ट्रेन व हवाई जहाज के सभी टिकीट दो माह पूर्व ही आरक्षित करवा लिये थे।

सफर कि शुरुआत

उज्जैन में महाकाल और चिंतामण श्री गणेश जी के दर्शन कर यात्रा का श्रीगणेश किया। 
सबसे पहले हमनें अपना यात्रा मार्ग व दर्शनीय स्थलों का एक रुट चार्ट बनाया। इसके अनुसार एक दिन दिल्ली में रुकना तय था। 
  
इस सफर में मन में कहीं न कहीं अजीब सी कशमकश की मनो स्थिती बन रही थी। काश्मीर क्या पूर्ण सुरक्षित है। वहां पर्यटकों से कैसा व्यवहार करते होगें। शाकाहारी भोजन की क्या स्थिति है। लेन देन के क्या विकल्प होगें । क्या सभी जगह नगद भुगतान करना पड़ेगा। ऐसे ही ढेरों प्रश्न मन में उठ रहे थे। आप भी कुछ इसी तरह का सोच रहे होगें। हमारी काश्मीर श्रृंखला में बने रहियेगा। सभी प्रश्नों का उत्तर हम देते रहेंगें।
 
शाम की ट्रेन थी सो हम लोग भीड़भाड़ से बचने के लिए आधे धंटे पहले ही स्टेशन पहूंच गये। अभी गाडी आने में समय था लेकिन प्लेटफार्म पर भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। आरक्षण होने से हमें कोई परेशानी नहीं हुई। 

सुबह 6.00 बजे हम लोग नई दिल्ली पहुंच गए थे। स्टेशन पर ही प्रीपेड टेक्सी लेकर सीधे होटल पहुंचे। यहां पहले से कमरा आरक्षित था। थोडी सी जानकारी और आधार कार्ड की फोटोकापी देकर जरुरी औपचारिकताएं पुरी कर  सीधे कमरे में आ गये। दिन व्यर्थ न जाये इसलिये सभी तैयारी लग गये। दिल्ली धूमने के लिये एक लोकल टेक्सी बुलवा ली थी। हम लोग होटल से करीब 9.45 बजे दिल्ली घूमने निकले। पहला पाइंट कुतुबमीनार था।‌‌ यहां टिकीट लेकर अंदर जाने पर मालूम पडा यह कितने बडे भू भाग में बना है। मीनार के पास सुंदर बगीचा और कुछ पुरातन निर्माण हैं। थोडा आगे जाने पर बहुत पुराना लौह स्तंभ है जिस पर अभी तक किसी भी प्रकार का कोई मौसमी प्रभाव नहीं पड़ा है। यह बहुत ही अद्भुत है।


     

  लोटस टेंपल                                                                                                                                               

हमारा अगला पाइंट लोटस टेंपल पुराना नाम कमल मंदिर था । बहुत बडे भू भाग में सुंदर बगीचे के मध्य लोटस के आकार का भव्य भवन बना हुआ है। यह बहाई समाज  का आराध्य स्थल है। लेकिन सभी आम जन के लिये खुला हुआ है। ‌।                                              

लाल किला                                                                                                                                               

कुतूबमीनार
कुतूबमीनार 


लाल किला जी हां यह वही किला है जहां से हमारे देश के पीएम 26 जनवरी और पंद्रह अगस्त को देश को संबोधित करते है। 
इसका निर्माण शाहजंहा ने सफेद बलूआ पत्थरों से सन 1638/1648 के मध्य अपनी राजधानी शाहजहांनाबाद के रुप मे किला ए मुबारक के नाम से छः दिशाओं में खुलने वाले दरवाजों वाला बनवाया था। यह तीन मंजिला इमारत है। वर्तमान में उपरी मंजिल पर वार मेमोरियल म्यूजियम है। 

किला क्षेत्र में दीवान ए आम, दीवान ए खाश, मुमताज महल रंग महल और सुंदर बगीचों का निर्माण करवाया था। ऐतिहासिक महत्व के किले को देखना बहुत अच्छा लगा।

इंडिया गेट 



इंडिया गेट ,दिल्ली
इंडिया गेट ,दिल्ली 


इसका निर्माण प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्धों में शहीद हुऐ 90 हजार सैनिकों के सम्मान में अंग्रेजों द्वारा कराया गया था। एडविन लुटियंस के डिजाइन पर आधारित  42 फिट ऊंचे स्मारक का निर्माण 1914/1919 के मध्य करवाया गया था। और 10 वर्षो के बाद राष्ट्र को समर्पित कर दिया। कर्त्तव्य पथ से जुडे स्मारक को अमर जवान ज्योति के रुप में जाना जाता था। ये सभी आंकडे इंटरनेट से जुटाए है। इंडिया गेट के पास में एक छतरी बनी हैं जहां सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति लगी हुई है। शाम को पुरा गेट तिरंगी रोशनी में नहाया हुआ था।  रंगीन रोशनी और बगीचे में घूमना बहुत अच्छा लग रहा था। कर्त्तव्य पथ के दुसरी ओर राष्ट्रपति भवन है। वैसे तो दिल्ली में और बहुत से पाइंट है मगर रात 8.00 बज गये थे । अतः वापस होटल चल दिए।
अगले दिन हमारी श्री नगर की फ्लाईट थी और सुबह 8.30 बजे रिपोर्टिंग टाईम होने से जल्दी पहुंचना था।



जय श्रीकृष्ण 


झीलों का शहर, उदयपुर

झीलों का शहर, उदयपुर



सिटी प्लेस ,उदयपुर
 

रविवार के दिन अवकाश का पुरा लुफ्त उठाते हुऐ सभी काम आराम से कर रहे थे। इसी बीच चाय का दौर चला। चाय की चुस्की के साथ गपशप करते हुऐ अचानक घुमने का प्रोग्राम बन गया। मगर कहां चले ये तय नहीं कर पा रहे थे। हमने तुरंत ही बिटिया को फोन पर अपने विचारों से अवगत कराया।  वह कुछ कहती उसके पहले बेटू ने राजस्थान चलने की फर्माइश कर डाली। हम भी सहमत हो गये। दिसंबर में राजस्थान की सैर का सबसे अच्छा समय होता है। 

अगले दिन सुबह उज्जैन के लिये रवाना हुए। शाम को घर पर यात्रा के लिए विचार विमर्श करके तय किया राजस्थान चलना चाहिये। मगर राजस्थान में सभी शहर धूमने लायक है। पुनः खोज करना पड़ी और सब की सहमति झीलों की नगरी उदयपुर के लिए बनी।यह शहर बहुत सुंदर और अपनी स्थापत्यकला के लिए मशहूर है। जितना शहर सुंदर है उतना ही वहां पहुंचने का मार्ग भी। रास्ते में बोगदें (सुरंग) मिलते हैं। गूगल बाबा के अनुसार उज्जैन से उदयपुर की दूरी तकरीबन 350 किमी है। यह नागदा जंक्शन ,जावरा,नीमच निम्बाहेडा और मंगलवाडा होते करीब 8 धंटे का सफर है। मार्ग में कई दर्शनीय स्थल होने से बोरियत नहीं महसूस होती है। दिसंबर में ठंड बहुत ज्यादा थी बाहर शरीर कंपकपा ने वाली ठंडी हवा चल रही थी। ऐसे में  विचार आया की चले या नहीं चले। मगर सभी के उत्साह को ध्यान में रखकर हिम्मत जुटाई और करीब 7.30 बजे चल दिये। कार के सभी कांच चढे होने पर भी ठंड लग रही थी। सफर का पहला पडाव नागदा में था। यहां लक्ष्मीनारायण जी का बिडला मंदिर देखने लायक है। बगीचे और मंदिर की व्यवस्था कुशल संचालन की वजह से बहुत सुंदर है। एक धंटे के विश्राम के बाद पुनः यात्रा शुरु करी अब अगला मुकाम मंदसौर था। यहां शिवना नदी के तट पर स्वयंभू पशुपतिनाथ जी का बहुत बडा और आकर्षक शिवलिंग है। दर्शन कर मन प्रसन्न हो गया जल्दी ही अपना सफर पुनः शुरु किया किंतु आगे अच्छा खासा जाम लगा हुआ था। एक जुलूस के कारण कई वाहन अपनी लेन छोड गलत दिशा में चलने से बडी विकट स्थिती बन गई । खैर किसी तरह बाहर निकलें। इन सब में बहुत सा समय खराब हो गया।  उदयपुर जाते समय रास्ते में दो जगह टनल मिलती हैं। बडा ही खुबसुरत दृश्य था।



झीलों का शहर, उदयपुर
उदयपुर
बोगदें उदयपुर हाईवे पर


 उदयपुर बहुत ही रमणीय स्थान हैं। कहते हैं ये झीलों की नगरी है। यहां के प्रमुख दर्शनिय स्थलों में


झीलों का शहर, उदयपुर
झीलों का शहर, उदयपुर

1. शिल्पग्राम 

2. दूध तलाई

3. देवाली सनसेट पाईंट ,करणी माता सनसेट पाईंट,मोती सागर लेक व्यूह पाईंट, 

4.अंबराई धाट,लाल धाट पिछोला लेक,लाल धाट लेक,पिपली धाट,हीरा बावडी,हनुमान धाट,  वेक्स म्यूझियम,अहार म्यूझियम,फिश एक्वोरियम,विटेंज कार म्यूझियम,

5 .जगदीश टेंपल,जग मंदिर,भारत माता मंदिर ,

 6. प्रताप पार्क, पंडित दीनदयाल उपाध्याय पार्क,पन्नाधाय पार्क,लेक गार्डन,बायोलाजिकल पार्क, 

7.  सिटी पैलेस ,सज्जनगढ़ मानसून पैलेस,मोती महल, 

8.  महाराणा प्रताप स्मारक,नायकों का हाल,रायल सनोताप्स, 

9.फतेह सागर,रुप सागर,रेल सागर, 

10. सहेलियों की बाडी 


सहेलियों की बाडी, उदयपुर
सहेलियों की बाडी

उदयपुर धूमने के लिये कम से कम तीन से चार दिन चाहिये। परिवार के सभी सदस्यों ने बहुत आनंद लिया। यहां रहने और खाने के लिये सभी स्तर की व्यवस्था है ।हां मगर यह जगह थोडी मंहगी अवश्य है। प्रमुख पर्यटन स्थल होने से सडक व वायू मार्ग से जुडा हुआ है। आपको एक बार अवश्य आना चाहिये।



जय श्री कृष्ण 











 



 


विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी

 

विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी के दरबार में



विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी
विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


एक कहावत है। जब मन से याद करो तो इच्छा अवश्य पुर्ण होती है। वैसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। एक पारिवारीक शादी में शामिल होने पेटलावद जाना था। घर के अधिकांश लौग बस से रवाना हो गये थे। हम कुछ सदस्यों को कार से जाना था। सभी ने तय किया तारखेडी हनुमान जी के दर्शन करने चलेगें।  


विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी

विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


सभी अति प्रसन्न थे कि चलो तारखेडी हनुमान जी के दर्शन लाभ भी हो जायेंगें। समय का सद उपयोग कर रास्ते में कहीं पर भी नहीं रूके। हमारे साथ चल रही गाडी के सभी लौग मार्ग से भलीभांति परिचीत थे। इसलिये मार्ग में कोई असुविधा भी नहीं हुई। इंदौर अहमदाबाद हाईवे पर राजगढ ग्राम से थोडा चलने पर तारखेडी के लिये मुडना पडता है। खैर, मंदिर पहुंच कर बडा सकून मिला। प्रागंण में राम धुन के चलते माहौल पूर्ण भक्ति मय था।  सभी ने दर्शन कर मंदिर में कुछ देर विश्राम किया। यहां के बारे में जानने कि मेरी उत्सुकता ने स्थानिय भक्तों से मुलाकात करी। 

इतिहास 

एक वृद्ध सज्जन ने बताया कि महंत श्री राम जी प्रप्पन्न  हनुमान जी के अनन्य भक्त थे। सदा हनुमान जी की भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन वह हनुमान जी कि अराधना कर रहे थे। तभी उन्हें दिव्य अनुभुति का अहसास हुआ। उसी रात हनुमान जी ने स्वप्न में दर्शन देकर दिव्य मुर्ति के बारे में बताया। प्रातःकाल पुर्ण विधी विधान से खुदाई कर दिव्य प्रतिमा निकाली और जहां आज मंदिर है। वहीं पर स्थापना कर पुजा अर्चना करने लगे।तभी से यहां पर हवन, पुजन ,आरती, सुन्दरकांड और रामायण पाठ तथा राम धुन होती रहती है।  सन 1970 से अखंड ज्योत प्रजव्लित है। 

आस्था

विश्वमंगल हनुमान जी के भक्तों की आस्था इतनी प्रबल है। कि जब भी कोई नया काम ,नया वाहन अथवा नवीन कार्य का शुभारंभ करता है। तो सर्वप्रथम मंदिर में हनुमान जी के समक्ष उपस्थित होकर उनकी कृपा और सफलता के लिये प्रार्थना करता है। 
प्रत्येक मंगलवार को हवन कीर्तन होते है। हनुमान जयंती पर महाआरती के पश्चात प्रसादी वितरण का आयोजन होता है। प्रति वर्ष अश्विन व चैत्र नवरात्रों मे मंदिर में विशेष साज सज्जा की जाती है। अखंड रामायण पाठ किये जाते है। 


विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी
विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


 एक बार यहां दर्शन कर अनुभव कर सकते है। हनुमान जी के एक और दिव्य चमत्कारी अति प्राचीन बलवारी हनुमान  मंदिर तक  पद यात्रा कर सुखद दिव्य अनुभूति का अहसास होगा । यकीन ना हो तो एक बार कर के देखे ।  

कैसे पहूंचें


निकटतम रेल्वे स्टेशन  मेधनगर व बामनिया हैं। जो कि रतलाम बडौदा रेल मार्ग पर स्थित है। यहां से बस अथवा छोटे वाहन से मंदिर पहूंच सटते है। 
निकटतम सर्व सुविधा युक्त ग्राम पेटलावद है।

सडक मार्ग से इंदौर अहमदाबाद हाईवे पर राजगढ से आगे पेटलावद मार्ग पर जाना होता है।
 
              जय सियाराम 



 

विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी के दरबार में



विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी
विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


एक कहावत है। जब मन से याद करो तो इच्छा अवश्य पुर्ण होती है। वैसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। एक पारिवारीक शादी में शामिल होने पेटलावद जाना था। घर के अधिकांश लौग बस से रवाना हो गये थे। हम कुछ सदस्यों को कार से जाना था। सभी ने तय किया तारखेडी हनुमान जी के दर्शन करने चलेगें।  


विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी

विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


सभी अति प्रसन्न थे कि चलो तारखेडी हनुमान जी के दर्शन लाभ भी हो जायेंगें। समय का सद उपयोग कर रास्ते में कहीं पर भी नहीं रूके। हमारे साथ चल रही गाडी के सभी लौग मार्ग से भलीभांति परिचीत थे। इसलिये मार्ग में कोई असुविधा भी नहीं हुई। इंदौर अहमदाबाद हाईवे पर राजगढ ग्राम से थोडा चलने पर तारखेडी के लिये मुडना पडता है। खैर, मंदिर पहुंच कर बडा सकून मिला। प्रागंण में राम धुन के चलते माहौल पूर्ण भक्ति मय था।  सभी ने दर्शन कर मंदिर में कुछ देर विश्राम किया। यहां के बारे में जानने कि मेरी उत्सुकता ने स्थानिय भक्तों से मुलाकात करी। 

इतिहास 

एक वृद्ध सज्जन ने बताया कि महंत श्री राम जी प्रप्पन्न  हनुमान जी के अनन्य भक्त थे। सदा हनुमान जी की भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन वह हनुमान जी कि अराधना कर रहे थे। तभी उन्हें दिव्य अनुभुति का अहसास हुआ। उसी रात हनुमान जी ने स्वप्न में दर्शन देकर दिव्य मुर्ति के बारे में बताया। प्रातःकाल पुर्ण विधी विधान से खुदाई कर दिव्य प्रतिमा निकाली और जहां आज मंदिर है। वहीं पर स्थापना कर पुजा अर्चना करने लगे।तभी से यहां पर हवन, पुजन ,आरती, सुन्दरकांड और रामायण पाठ तथा राम धुन होती रहती है।  सन 1970 से अखंड ज्योत प्रजव्लित है। 

आस्था

विश्वमंगल हनुमान जी के भक्तों की आस्था इतनी प्रबल है। कि जब भी कोई नया काम ,नया वाहन अथवा नवीन कार्य का शुभारंभ करता है। तो सर्वप्रथम मंदिर में हनुमान जी के समक्ष उपस्थित होकर उनकी कृपा और सफलता के लिये प्रार्थना करता है। 
प्रत्येक मंगलवार को हवन कीर्तन होते है। हनुमान जयंती पर महाआरती के पश्चात प्रसादी वितरण का आयोजन होता है। प्रति वर्ष अश्विन व चैत्र नवरात्रों मे मंदिर में विशेष साज सज्जा की जाती है। अखंड रामायण पाठ किये जाते है। 


विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी
विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


 एक बार यहां दर्शन कर अनुभव कर सकते है। हनुमान जी के एक और दिव्य चमत्कारी अति प्राचीन बलवारी हनुमान  मंदिर तक  पद यात्रा कर सुखद दिव्य अनुभूति का अहसास होगा । यकीन ना हो तो एक बार कर के देखे ।  

कैसे पहूंचें


निकटतम रेल्वे स्टेशन  मेधनगर व बामनिया हैं। जो कि रतलाम बडौदा रेल मार्ग पर स्थित है। यहां से बस अथवा छोटे वाहन से मंदिर पहूंच सटते है। 
निकटतम सर्व सुविधा युक्त ग्राम पेटलावद है।

सडक मार्ग से इंदौर अहमदाबाद हाईवे पर राजगढ से आगे पेटलावद मार्ग पर जाना होता है।
 
              जय सियाराम 



सिद्ध तपोभूमि वागनाथ


सिद्ध तपोभूमि वागनाथ 




सिद्ध तपोभूमि वागनाथ
सिद्ध तपोभूमि वागनाथ 


नर्मदा नदी का किनारा प्राकृतिक रुप से बहुत सम्पन्न है। हर तरफ हरियाली अथाह जल राशि और एकांत। ऐसे में इसके किनारे पर बहुत सारे आराध्य स्थल,तपोभूमि, मंदिर व आश्रम हैं। जहां पर साधू, संत,दिव्य विभूतियां और सिद्ध महात्मा सदैव अपनी साधना में लीन रहते है।  वे ईश्वर अराधना के लिये  पुजा,जप,तप,और विशेष अनुष्ठान कर यज्ञ करते हैं। इन स्थलों की जानकारी आम जनता को यज्ञ की पुर्णाहुती अथवा भंडारों पर ही लग पाती हैं। कई स्थल तो आज भी जानकारी के अभाव में अछुते है। या कहें कि उनकी जानकारी स्थानीय स्तर तक ही सिमीत रह जाती है।   वागनाथ एक रमणीय ,शांत और प्राकृतिक दृश्यों से ओत प्रोत स्थल है। यहां पर अति प्राचीन दो शिव लिंग स्थित है। एक तट से उपर वागनाथ महादेव जिसके बारे में पुरातत्व विभाग का कहना है। यह भूमि में करीब 11 फिट अंदर तक है। तथा दुसरा नर्मदा के किनारे जागनाथ महादेव। कहते है दोनों स्थानों के दर्शन करने पर ही प्रतिफल मिलता है।

सिद्ध तपोभूमि वागनाथ
जागनाथ महादेव मंदिर 


वागनाथ महादेव जी

यह स्थान धार जिले के मनावर तहसील अंतर्गत एकलबारा ग्राम के निकट पहाड़ी पर स्थित है। नर्मदा नदी के किनारे होने से एक तरफ जल व दुसरी तरफ पहूंच मार्ग है। किंतु वर्षा काल और उसके बाद भी जब नर्मदा में जल स्तर बढ जाता है। तो चारों ओर पानी से धिरा होने के कारण आने जाने के लिये नौका ही एक मात्र सहारा होता है। यहां पर एक विशाल वृक्ष के समीप हनुमान मंदिर है। पास ही में वागनाथ महादेव और किनारे पर जागनाथ महादेव का मंदिर है। शाम को यहां से नर्मदा नदी का बहुत ही मनोरम दृश्य दिखाई देता है। शोरगुल से दूर एकदम शांत यह छोटी सी जगह मन को असीम शांति देती है। यही कारण है कि  ये संतो की प्रिय स्थली है। 

सिद्ध तपोभूमि वागनाथ
वागनाथ महादेव मंदिर 

इतिहास  

यहां के इतिहास का कोई भी प्रमाणिक साक्ष्य तो उपलब्ध नहीं है। लेकिन वृद्धजनों ने बताया कि नर्मदा पुराण में कही इसके बारे में उल्लेख है। पुरातन काल में यहां पर राजा ब्रह्मदत्त ने 99 यज्ञ करवाये थे। तभी से इसे सिद्ध स्थान के रुप में देखा जाता है। आज भी संत, महात्मा योगी समय समय पर आते हैं। और अपनी साधना पूर्ण कर गंतव्य की ओर प्रस्थान कर देते है। स्थाई निवास किसी ने भी नहीं बनाया। 

संत कि साधना स्थली 

सन 2020 में भारी बारिश के चलते नर्मदा अपने रौद्र रुप में थी। जहां तक नजर जाती अथाह पानी हिलोरे लेता नजर आता था। ऐसे में जल स्तर बढने के कारण बचाव दल दिन रात निगरानी पर था।  वागनाथ महादेव स्थल भी चारों ओर से पानी से धिर गया था। सुरक्षा के चलते किनारों की बिजली अवरूद्ध कर दी गई थी। रात को अंधेरे में जलधारा की तीव्र ध्वनि भय उत्पन्न कर रही थी। ऐसे में वहां पर एक संत अपनी साधना में लीन थे। बढते जल स्तर के चलते बचाव दल ने बाबा से अनुरोध किया आप सुरक्षित स्थल पर आ जाये। किंतु बाबा जी ने कहा यहां कुछ भी अनहोनी नहीं होगी आप निश्चिंत रहें।  वे निर्भय होकर अपनी साधना में लगे रहे। बाद में स्थानीय लोगों के कहने पर पास ही ग्राम में वर्षाकाल व्यतित किया। 
जब जल स्तर कम हुआ तो मन में अभिलाषा हुई क्यों न एक बार इस स्थान पर चला जाय। हम अपने साथीयों के साथ वागनाथ दर्शन करने गये। उस समय संत महात्मा यज्ञ कर रहे थे। दूर से ही मंत्रों की लयबद्ध ध्वनि और आहुति डलने से उत्पन्न अग्निदेव की तीव्रता वायुमंडल में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह कर रही थी। हम धन्य हो गये उस पल के साक्षी होकर।  
       

सिद्ध तपोभूमि वागनाथ
विशाल और प्राचीन वृक्ष


आज भी नर्मदा नदी के किनारे कई ऐसे दिव्य स्थल हैं। जो बहुत कम लोगों को ही मालूम है। यहां कई बार दिव्य ऋषि मुनि तप साधना के लिये आते है। और अपनी साधना पूर्ण कर चल देते है। हमारा तो प्रयास है कि इन स्थानों की आम जनता तक पहचान हो। कई अद्भुत और सिद्ध स्थान इस क्षेत्र में कुछ किमी की दूरी पर है। उनमें से हनुमान जी का बहुत पुराना मंदिर है। यहां पर हनुमान जी की बहुत पुरानी दिव्य और चमत्कारी मूर्ति है। स्थानीय निवासी प्रति वर्ष पद यात्रा कर मंदिर में ध्वज चढ़ाते हैं। चलिये हम आपको भी इस यात्रा पर ले चलते है। अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा।

जय श्री कृष्ण 



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